शहडोल : संभाग मुख्यालय में आंख से काजल की हो गई चोरी..नगर पालिका का दसकों को पूर्व निर्मित मेला ग्राउंड स्टेज को कब्जा करने खोद दिया सीमा रेखा….हो गया लाखों का भ्रष्टाचार…?
संभाग मुख्यालय में आंख से काजल की हो गई चोरी..
नगर पालिका का दसकों को पूर्व निर्मित मेला ग्राउंड स्टेज को कब्जा करने खोद दिया सीमा रेखा….
हो गया लाखों का भ्रष्टाचार…?
शहडोल । (संजय गर्ग) । बाणगंगा मेला मैदान में चबूतरा करीब पांच दशक पहले प्रधानमंत्री की भाषण के लिए बनाया गया था बाद में इसमें संशोधन भी हुआ और इसे और व्यवस्थित किया गया, तब तक इसका कोई मालिक नहीं आया। वैसे तो यह पूरा क्षेत्र करीब 200 साल से बांणगंगा मंदिर मेला परिषद का माना जाता रहा, करीब हजार साल पहले बनी विराट मंदिर के पास लग रहे मेले में यहां स्थापित रूप से तब यह जंगल रहा होगा। हालांकि बांण गंगा का मेला डिंडोरी अमरकंटक आसपास के क्षेत्र तक प्रसिद्ध था और उसकी भीड़ आती थी।
माफियाओं की ताकत जब अफसर के साथ मिलकर नगर पालिका परिषद में कब्जा कर लेती है और नेता करोड़ों रुपए खर्च करके बांधवगढ़ रिसोर्ट में भी जाकर करोड़ों रुपए खर्च करते हैं तब नगर पालिका परिषद में कब्जा करने का ख्वाब देखते हैं तो कुछ लोग यूं ही करोड़ों रुपए खर्च करके नेता बन जाते हैं जो वास्तव में नेता कभी नहीं होते सिर्फ एक माफिया अनुमान दलाल होते हैं लेकिन राजनीति से अच्छी पैठ के कारण वह इस पर अपना कब्जा बनाए रखते हैं क्योंकि ऐसे नेताओं को मालूम होता है नगर पालिका परिषद में अफसर के साथ मिलकर करोड़ों रुपए की कीमती जमीन पर माफियागिरी कैसे करनी होती है और दलाल नुमा नेता बन जाते। भ्रष्टाचार उनके डीएनए में होता है।
किंतु तकलीफ वहां होती है जब करीब 1000 वर्ष से चले आ रहे हैं विराट मंदिर परिसर क्षेत्र की करीब हजार वर्ष पूर्व स्थापित मेल परिषद की जमीन निजी क्षेत्र के लोगों को दे दी जाती है अब तो लोकतंत्र आने के बाद 50 साल पहले जहां प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी इसके बाद चौधरी चरण सिंह इत्यादि के लिए स्टेज बनाया गया था ताकि मेला मैदान में आम सभा हो सके। अब उसे स्टेज को यानी उसे मंच को ही नगर पालिका परिषद की नेतागिरी ने तथाकथित जमीन मालिक के हवाले कर दिया है।
इससे मेला मैदान का रकबा जो लगातार छोटा हो रहा था और भीड़ बढ़ती जा रही थी वह और छोटा हो गया। आने वाले समय में इतना छोटा हो जाएगा कि इस मेला मैदान में दुर्घटनाएं बढ़ती ही चली जाएगी।
एक तरफ मथुरा वृंदावन के भगवान बांके बिहारी को की बढ़ती भीड़ को व्यवस्थित करने के लिए अयोध्या और काशी के तर्ज पर लोगों की जमीन अधिग्रहण करके भीड़ नियंत्रित किया करने के लिए कॉरिडोर बनाए जा रहे हैं तो दूसरी तरफ संभाग मुख्यालय के आदिवासी विशेष क्षेत्र में हजार वर्ष पुराने विराट मंदिर के मेला परिषद की जमीन को जो नगर पालिका के कब्जे में है नेता लाखों रुपए की हेरा फेरी करके जमीन का आधिपत्य कब्जा दूसरों को दे रहे। तीन दिन पहले कई दशक पुराना नगर पालिका का यह स्टेज को किसी व्यक्ति ने ट्रेंच खोलकर स्टेज को अपने अंदर करने का प्रयास किया या कर लिया है कहा जा सकता है उसका संबंध है सोहागपुर से है और नगरी प्रशासन के संयुक्त संचालक कार्यालय में फर्जी तरीके से एंट्री पा गया है। इसलिए अब अफसर और नेता मिलकर माफिया बने और नगर पालिका की कब्जे की जमीन को दूसरे के आधिपत्य में कब्जा करा रहे हैं।
क्षेत्रीय राजस्व निरीक्षक का कहना है कि उन्होंने कोई सीमांकन हाल में नहीं किया।
एक बार मान भी लिया जाए कि जैसे विराट मंदिर के बगल वाला तालाब जो हजार साल का था उसे पर पूरा सोहागपुर ऐतिहासिक गांव निस्तार करता था वह किसी निजी पट्टा की आराजी बनाकर एक बड़े तालाब को सार्वजनिक हत्या कर आंशिक रूप में खाली करने में और कब्जा करने में कुछ सफलता कथित जमीन मालिक को मिल गई है। क्योंकि वह उसे तालाब को तोड़ करके पानी निकाल देता है बड़ी ईमानदारी से विराट मंदिर के पुरातत्व शाखा ने इस तालाब को अपना करने से इनकार कर दिया। यह तो तय है सोहागपुरगढ़ी के राजा के अलावा किसी की औकात नहीं थी कि वह इतना बड़ा तालाब विराट मंदिर के बगल में बना सके। स्वाभाविक है राजा ने राज्य की जमीन पर तालाब बनाए रहा होगा। वह अलग यह अलग कहानी है कि कैसे फर्जी तरीके से पट्टे बन जाते हैं और जमीन मालिक बनकर आधुनिक माफियाओं से मिलकर जमीनों पर हेरा फेरी हो रही है। मान भी ले की मेला ग्राउंड का स्टेज किसी का रहा तो क्यों इसका अधिग्रहण अभी तक नहीं किया गया..? जबकि नगर पालिका क्षेत्र में भीड़ बढ़ती जा रही है मेला तब कहां लगेगा यह क्यों नहीं सोचा या परिषद में बैठे नेता और अधिकारी मान बन चुके हैं भविष्य में भीड़ के कारण जो दुर्घटनाएं होगी उसमें जो लोग मरेंगे अपनी मौत मरेंगे…. फिलहाल को लाखों ले-देकर के कब्जा उपर ही ऊपर सौंप दिया है। 2 दिन पहले इस स्टेज को कब्जाने के पीछे कौन से माफिया सक्रिय रहे आखिर इसको कौन देखेगा…? यह बड़ी बात है। क्योंकि सिर्फ श्मशान घाट में बोर्ड लगा देने से निर्माण कार्य रुक जाए ऐसा कम देखा गया है झोपड़ी भी बन जाती है और बोर्ड भी लगा रहता है। बेहतर हो कि प्रशासन सतर्क होकर के कब्जा कर रहे लोगों से मेला ग्राउंड को सुरक्षित करने का प्रयास करें और संयुक्त संचालक कार्यालय में बैठे हुए किसी भी व्यक्ति को माफिया बनने से रोके। अन्यथा रामराज तो है ही। जब किरण टॉकीज की बावड़ी सारे आम जल स्रोत को सुखाकर अब न्यायालय से स्थगन ले लिया गया है तो नगर पालिका के बने स्टेज पर कब मकान बन जाए और यह जमीन बिक जाए कहा नहीं जा सकता… नगर पालिका ग्राउंड सड़क बनाकर नया भ्रष्टाचार को अंजाम देगी……, फिलहाल यही नगर पालिका का राम राज्य है। ज्यादा जागरूकता की बात यह है कि जो कांग्रेस पार्टी 3 करोड़ का गांजा पकड़ने के लिए जैसिंहनगर के मौका स्थल पर मुआयना कर सकती है उसका अध्यक्ष नगर पालिका में होते हुए मेला ग्राउंड को सुरक्षित कर पाने में कांग्रेस मूक बधिर क्यों है…? क्या कांग्रेस को माफिया से डर लगने लगा है या फिर सौदेबाजी हो गई…?